रायपुर – छत्तीसगढ़ की राजधानी स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षक भर्ती को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए विज्ञापन को लेकर वर्तमान में कार्यरत अतिथि शिक्षकों ने आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि वर्षों से पढ़ा रहे शिक्षकों को दरकिनार करते हुए नए आवेदनों को प्राथमिकता दी जा रही है, जो न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि उच्च शिक्षा विभाग की नीतियों के खिलाफ भी है।
क्या है पूरा मामला?
विश्वविद्यालय प्रशासन ने कुछ दिन पहले अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें कई पदों को रिक्त दर्शाया गया। इन पदों के लिए नए आवेदन मांगे गए, जबकि वर्तमान में जिन शिक्षकों की सेवाएं ली जा रही हैं, उन्हें भी नए प्रोसेस से गुजरने का निर्देश दिया गया है।
विवाद तब और गहरा गया जब कई वर्षों से पढ़ा रहे अतिथि शिक्षकों ने इसे अपने सम्मान और अधिकारों के खिलाफ माना। उनका कहना है कि वे 9 सालों से यहां पढ़ा रहे हैं और अब उन्हें नए उम्मीदवारों के साथ समान रूप से प्रक्रिया में शामिल किया जाना अनुचित है।
शिक्षकों ने कुलपति से की मुलाकात
सोमवार को अतिथि शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल विश्वविद्यालय के कुलपति महादेव कावरे से मिला और छह सूत्रीय मांग पत्र सौंपा। इसमें उन्होंने वरीयता के आधार पर नियुक्ति, बिना पुनः प्रक्रिया में शामिल हुए सेवा जारी रखने, तथा पिछले अनुभव के आधार पर न्याय करने की मांग की। कुलपति ने उनकी बातें सुनीं और उन्हें सुझाव दिया कि वे नियमानुसार प्रक्रिया से गुजरें, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
सचिव ने दी स्पष्टता
दैनिक भास्कर से बातचीत में उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. एस. भारतीदासन ने कहा कि, “शिक्षा विभाग द्वारा जारी पॉलिसी का पालन सभी विश्वविद्यालयों को करना अनिवार्य है। यदि किसी भी स्तर पर इसका उल्लंघन हो रहा है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नियमानुसार ही भर्ती प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन पुराने शिक्षकों के अनुभव को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए, यदि पॉलिसी में उनका वरीयता का अधिकार स्पष्ट है।
अन्य विश्वविद्यालयों में नीति का पालन
अतिथि शिक्षकों का यह भी कहना है कि प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय सहित कई अन्य संस्थानों में वर्तमान में पढ़ा रहे शिक्षकों को प्रक्रिया से बाहर रखते हुए सीधा सेवा विस्तार दिया गया। ऐसे में यदि एक समान नीति है तो उसका पालन सभी जगह होना चाहिए।
राजनीतिक हस्तक्षेप की भी संभावना
विश्वविद्यालय में चल रहे विवाद को लेकर शैक्षणिक जगत के साथ-साथ राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज हो गई है। माना जा रहा है कि यदि मामला जल्द नहीं सुलझा, तो यह आंदोलन का रूप भी ले सकता है। शिक्षकों की मांग है कि उन्हें सिर्फ़ “संख्या” ना समझा जाए, बल्कि उनके अनुभव और सेवा को भी सम्मान दिया जाए।